रत्न परिचय

रत्न (Gemstone) क्या है -

रत्न एक बहुमूल्य नग आकर्षक खनिज का एक पत्थर होते हैं जो बहुत सून्दर और आकर्षक होता हैं। जो कटाई और पॉलिश करने के बाद गहने और अन्य आभूषण बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है । रत्न चमकदार, प्रकाश की किरणों से प्रभावित होकर शरीर पर उन किरणों का प्रभाव डालने वाला रत्न अपने गुणों के कारण ज्योतिष शास्त्र में अपनी विशेष भूमिका रखते है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रत्न में शक्तियों का भण्डार होता हैं, जो शरीर में स्पर्श के माध्यम से प्रवेश करती है। रत्नों में अलग-अलग चुम्बकीय शक्तियाँ होती हैं । पौराणिक मान्यता के अनुसार रत्न में दैवीय शक्ति समाहित होती है, जिनसे मनुष्य जीवन में परिवर्तन उत्पन्न होता है। रत्न आभूषणों के रूप में शरीर की शोभा तो बढ़ाते ही हैं, साथ ही उनमें अपनी दैवीय शक्ति के प्रभाव के कारण रोगों का निवारण भी करते हैं।

रत्न क्यों धारण करना चाहिए

वैदिक ज्योतिष के अनुसार देखें तो हर रत्न का किसी न किसी ग्रह से जुड़ा होता है। जैसे सूर्य का संबंध माणिक्य रत्न से, चन्द्रमा का मोती से, बुध का पन्ना से, गुरु का पुखराज से, शुक्र का हीरा से, शनि का नीलम से, राहू का गोमेद से और केतु का लहसुनिया से। इसी प्रकार रत्नों के उपरत्न भी होतें है।

ज्योतिषी से जन्म कुण्डली दिखा कर मनुष्य अशुभ ग्रहों को शुभ बनाना या फिर शुभ ग्रहों को अपने लिए और अधिक शुभ बनाने की मनुष्य की चाहत रहती है जिसके लिए वो अनेकों उपाय करता है उन्ही उपायों में से एक उपाय है रत्न धारण करना। ज्योतिष में ग्रहो के बल को बडाने हेतु रत्न धारण करना एक महत्वपूर्ण एवं असरदार उपाय माना जाता है।

रत्न मुख्यतः नौ प्रकार के होते है। माणिक्य, मोती, मूँगा, पन्ना, पुखराज, हीरा, नीलम, गोमेद और लहसुनिया ये मुख्य रत्न कहे जाते हैं।

रत्न धारण की विधि

रत्नों के धारण करनें कि एक विधि शास्त्रों में वर्णित है उसी विधि से रत्नों को धारण करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। प्रत्येक रत्न को धारण करनें कि विधि अलग है इस कारण धारण विधि रत्नों के साथ हमारे इस लेख में उपस्थित है। सामान्यतः दृष्टि से देखा जाये तो रत्न धारण करतें समय जिस ग्रह से संबंधित रत्न को धारण करना हैं तो उस ग्रह से संबंधित मंत्रों का जप तथा पूजा पाठ आदि को करना चाहिएं या विद्वान पण्डित जी करना चाहिए। पूर्ण रुप से प्रतिष्ठित व अभिमन्त्रीत रत्न आप हमारी संस्था में बंसस करके या हमें म्. उंपस करके मंगावा सकते है। रत्न को धारण करने से पूर्व उसे गंगा जल अथवा कच्चे दूध से शुद्ध करना चाहिए और रत्न विशेष दिन अथवा शुभ मुहूर्त में हि धारण करना चाहिए।

रत्नों के लाभ

रत्न के माध्यम से जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता पाई जा सकती है। रत्न को ग्रह शांति के लिए धारण किया जाता है रत्न के प्रभाव व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सुख की प्राप्ती होती है रत्न धारण करने से जीवन पर ग्रहों के अनुकूल प्रभाव पड़ते हैं रत्न के प्रभाव से जातक के जीवन में सकारात्म बदलाव होते हैं

मणिक्य (Ruby)

मणिक्य - माणिक्य (Ruby) रत्न सूर्य ग्रह के लिए होता है। जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में शुभ भावों का स्वामी सूर्य हो तो उस भाव को और बढ़ाने के लिए माणिक्य रत्न को धारण करना लाभदायक होता है। माणिक्य रत्न समाज में मान-सम्मान और सार्वजनिक क्षेत्र में उच्च पद दिलाता है
पहचान - मणिक्य लाल सुर्ख वर्ण का पारदर्शी, स्निग्ध-कान्तियुक्त और कुछ भारीपन वजन लिए होता है। 24 घन्टे मणिक्य को गाय के शुद्ध दूध में रखा जाये तो दूध गुलाबी हो जाता है।
वजन - माणिक्य पॉच या सात रत्ति का धारण करना चाहिए।
धारण विधि - शुक्ल पक्ष के रविवार वाले दिन, सूर्य की होरा में कृतिका, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराआषाढा नक्षत्र में या रवि पुष्य योग में सोने अथवा तांबे की अंगुठी में जडवा कर अंगुठी को गंगा जल से धोकर, सूर्य के बीज मन्त्र ॐ घृणि सूर्याय नमः या ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नमः का 7000 की संख्या में जाप करके शुभ चौगडिया में अनामिका अंगुली में धारण करना चाहिए।< उपरत्न- - माणिक्य के स्थान पर तामड़ी , लालड़ी , लाल तुरमली और गार्नेट भी पहन सकते हैं

मोती (Pearl)

मोती - मोती(Pearl) चन्द्रमा का रत्न है। जिस इंसान की जन्म कुंडली में शुभ भावों का आद्धिपति चन्द्रमा हो तो ऐसे जातक को मोती धारण करना चाहिए।
पहचान - मोती गोल श्वेत, उज्वल, चिकना,चन्द्रमा के सामान कान्ति युक्त एवं हल्कापन लिए होता है। आग के सर्म्पक मे आने पर मोती जले नही तो मोती असली होगा।
वजन - मोती चार, छः या ग्यारह रत्ति का धारण करना चाहिए। मोती की माला भी गले में धारण की जा सकती है।
धारण विधि - शुक्ल पक्ष के सोमवार वाले दिन, चन्द्र की होरा में हस्त, रोहणी अथवा श्रवण नक्षत्र में या पूर्णिमा तिथी में चांदी की अंगुठी में जड़वा कर अंगुठी को गंगा जल से धोकर, चन्द्र के बीज मन्त्र
ॐ सों सोमाय नमः या ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः का 11000 की संख्या में जाप करके शुभ चौगडिया में कनिष्ठका अंगुली में धारण करना चाहिए।
उपरत्न- -मोती के स्थान पर मून स्टोन, ऐगेट भी पहन सकते हैं

मूगां (Coral)

मूगां - मूंगा(Coral) मंगल ग्रह का रत्न होता है। जिन व्यक्तियों की जन्म-कुंडली में शुभ भावों का स्वामी मंगल हो तो ऐसे जातकों के लिए मूंगा रत्न धारण करना लाभदायक होता है। मूंगा नज़र और भूत-प्रेत आदि से बचाता है और आत्मविश्वास एवं सकारात्मक सोच में वृद्धि करता है।
पहचान - मूगां गोल, चिकना, चमकदार एवं औसत से अधिक वजनी, सिन्धुरी से मिलते-जुलते रंग का होता है। असली मूगां गाय के शुद्ध कच्चे दूध में रखा जायें तो मूगां के चारो ओर लाल झाई निर्मित हो जाती है।
वजन - मूगां छः रत्ति या इससें अधिक वजन का धारण करना चाहिए।
धारण विधि - मूगां शुक्ल पक्ष के मंगलवार वाले दिन, मंगल की होरा में मृगशिरा, चित्रा, या धानिष्ठा नक्षत्र में सोने या तांबे की अंगुठी में जडवा कर अंगुठी को दूध एवं गंगा जल से धो कर मंगल के बीज मन्त्र ॐ अं अंगारकाय नमः या ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः का दस हजार की संख्या में जाप करके शुभ मुहूर्त्त में अनामिका अंगुली में धारण करना चाहिए।
उपरत्न- -मूंगे का एक ही उत्तम उपरत्न है - लाल हकीक

पन्ना (Emerald)

पन्ना - पन्ना(Emerald) बुध ग्रह का रत्न होता है। अगर किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में शुभ भावों का अद्धिपति बुध हो तो उसके लिए पन्ना रत्न पहनना शुभ रहता है।
पहचान - पन्ना हरे रंग का स्वच्छ, पारदर्शी, चिकना व चमकदार होता है। शीशे की गिलास में पानी भर कर पन्ना डाला जायें तो पानी से हरी किरणें निकलते दिखाई देंगी।
वजन - पन्ना तीन, छः या सात रत्ति का धारण करना चाहिए।
धारण विधि - शुक्ल पक्ष के बुधवार वाले दिन, बुध की होरा में पुष्य, अश्लेषा, ज्येष्ठा, पूर्वा फाल्गुनी, रेवती नक्षत्र में या गुरु पुष्य योग में सोने की अंगुठी में जडवा कर अंगुठी को गंगा जल से धोकर, बुध के बीज मन्त्र ॐ बुं बुधाय नमः या ॐ ब्रां ब्र्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः का 17000 की संख्या में जाप करके शुभ चौगडिया में कनिष्ठिका अंगुली में धारण करना चाहिए।
उपरत्न- - ओनिक्स, हरा बैरुज, ओनेक्स, मरगज आदि

पुखराज (Topaz)

पुखराज - पुखराज (Topaz) बृहस्पति ग्रह का रत्न होता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में शुभ भावों का अद्धिपति बृहस्पति ग्रह हो उन लोगों को पुखराज धारण करना लाभदायक होता है।
पहचान - पुखराज स्पर्श में चिकना, हाथ में लेने पर कुछ भारी लगता है, पारदर्शी, प्राकृतिक चमक से युक्त होता है। 24 घन्टे पुखराज को गाय के शुद्ध दूध में रखने के बाद यादि उसकी चमक में अन्तर न आये तो पुखराज असली होगा। पुखराज की विशेषता है कि यह सूर्य की रोशनी में अधिक चमकीला नज़र आता है जबकि बल्ब की रोशनी में इसकी चमक कम हो जाती है.
वजन - पुखराज पॉच या सात रत्ति का धारण करना चाहिए।
धारण विधि - शुक्ल पक्ष के गुरुवार वाले दिन, गुरु की होरा में पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में या गुरु पुष्य योग में सोने की अंगुठी में जडवा कर अंगुठी को गंगा जल से धोकर, गुरु के बीज मन्त्र ॐ बृं बृहस्पतेय नमः या ॐ ग्रां ग्र्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः का 19000 की संख्या में जाप करके शुभ चौगडिया में तर्जनी अंगुली में धारण करना चाहिए।
उपरत्न- - पीला बैरुज , सुनेहला , येलो सिट्रीन आदि

हीरा (Diamond)

हीरा - हीरा (Diamond) शुक्र ग्रह का रत्न है। जिन लोगों की कुंडली में शुक्र अच्छे भावों का अद्धिपति होता है, उन्हें हीरा धारण करना चाहिए।
पहचान - हीरा अत्यन्त चमकदार, चिकना, कठोर, पारदर्शी एवं किरणों से युक्त हीरा असली होता है। धूप में यदि हीरा रख दिया जाये तो उसमें से इन्द्रधनुष जैसी किरणें दिखाई देती है। हीरा कॉंच के उपर चलया जायें तो कॉंच कट जाता है।
वजन - हीरा एक रत्ति या इससें अधिक वजन का धारण करना चाहिए।
धारण विधि - शुक्ल पक्ष के शुक्रवार वाले दिन, शुक्र की होरा में भरणी, पुष्य पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में सोने की अंगुठी में जडवा कर शुक्र के बीज मन्त्र ॐ शुं शुक्रय नमः या ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्रय नमः का सोलह हजार की संख्या में जाप करके शुभ मुहूर्त्त में मध्यमा अंगुली में धारण करना चाहिए। उपरत्न- -जरकन , अमेरिकन डायमंड और ओपल

नीलम (Sapphire)

नीलम - नीलम(Sapphire) शनि ग्रह का रत्न होता है जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में शुभ भावों का अद्धिपति शनि हो तो उन लोगों को नीलम रत्न पहनना चाहिए।
पहचान - नीलम स्पर्श में चिकना, चमकीला, पारदर्शी, प्राकृतिक चमक के साथ मोर पंख के समान वर्ण, नीली किरणों से युक्त होता है। 24 घन्टे नीलम को गाय के शुद्ध दूध में रखने के बाद दूध का रंग में नीलापन आ जाता है। शीशे की गिलास में पानी भर कर नीलम डाला जायें ओर पानी से नीली किरणें निकलते दिखाई दें तो नीलम असली होगा।
वजन - नीलम पॉच या सात रत्ति का धारण करना चाहिए।
धारण विधि - शुक्ल पक्ष के शनिवार वाले दिन, शनि की होरा में पुष्य, चित्रा, स्वाति, धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में या गुरु पुष्य योग में लोहे या सोने की अंगुठी में जडवा कर अंगुठी को गंगा जल से धोकर, शनि के बीज मन्त्र ॐ शं शनिश्चराय नमः या ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः का 23000 की संख्या में जाप करके शुभ चौगडिया में मध्यमा अंगुली में धारण करना चाहिए।
नोट- नीलम पहने से पहले नीलम ले कर नीले कपडें में बांध कर तकिये के नीचे रख कर तीन दिन तक उसी तकिये पर सर रख कर सोएं अगर बुरे सपने आना, चोट लगना, बुखार आना एवं परिवार वालों के साथ विवाद इत्यादि हो तो फिर नीलम नहीं धारण करना चाहिए।
उपरत्न- नीली, नीला टोपाज, लाजवर्त, सोडालाइट आदि

गोमेद (Zircon)

गोमेद - गोमेद( Zircon) रत्न राहु ग्रह का रत्न माना जाता है। जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में विद्वान ज्योतिषी ने गोमेद धारण करने आज्ञा प्रदान कि हो उन्ही को गोमेद रत्न पहनना चाहिए।
पहचान - गोमेद अधिकाशंतः बाज या उल्लु की ऑखों जैसा होता है। गोमेद का रंग गौ मुत्र के समान हल्के पीले रंग का होता है स्पर्श में चिकना होता है। 24 घन्टे गोमेद को गौ मूत्र में रखने से गौ मूत्र का रंग बदल जाएगा
वजन - गोमेद पॉच, सात या नौ रत्ति का धारण करना चाहिए।
धारण विधि - शुक्ल पक्ष के शनिवार को शनि की होरा में आर्द्रा, स्वाति, शतभिषा, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में या रवि पुष्य योग में लोहे या सोने अथवा पंचधातु की अंगुठी में जडवा कर अंगुठी को गंगा जल से धोकर, राहु के बीज मन्त्र ॐ रां राहवे नमः या ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः का 18000 की संख्या में जाप करके शुभ चौगडिया में मध्यमा अंगुली में धारण करना चाहिए।
उपरत्न- अम्बर, तुरसावा
नोट- मूंगा, माणिक्य, मोती और पीला पुखराज को गोमेद के साथ धारण नहीं करना चाहिए।

वैदूर्य (Cat’s Eye Stone)

वैदूर्य या लहसनिया - लहसुनिया (Cat’s Eye Stone) केतु ग्रह का रत्न होता है। जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में विद्वान ज्योतिषी ने लहसुनिया धारण करने आज्ञा प्रदान कि हो उन्ही को लहसुनिया रत्न पहनना चाहिए।
पहचान - वैदूर्य या लहसनिया अधिकाशंतः बिल्ली की ऑखों के समान चकमकता है। लहसनिया चार रंगों में पाया जाता है काली तथा श्वेत आभा युक्त लहसनिया जिस पर यज्ञोपवीत के समान तीन धारियां खिंची हों वह लहसनिया ही उत्म होता है। असली लहसनिया को यादि सीधे हडडी के उपर रख दिया जाये तो 24 घण्टे के अन्दर हडडी पर छेद कर देता है।
वजन - लहसनिया पॉच, सात या नौ रत्ति का धारण करना चाहिए।
धारण विधि - शुक्ल पक्ष के बुधवार को बुध की होरा में अश्विन, मघा, मूल नक्षत्रों में या रवि पुष्य योग में सोने अथवा पंचधातु की अंगुठी में जडवा कर अंगुठी को गंगा जल से धोकर, केतु के बीज मन्त्र ॐ कें केतवे नमः या ॐ स्त्रां सत्रीं सत्रौं सः केतवे नमः का 7000 की संख्या में जाप करके शुभ चौगडिया में मध्यमा अंगुली में धारण करना चाहिए।
उपरत्न- मार्का, एलेग्जण्ड्राइट