वर्तमान समय में ज्योतिषयों के मुख एवं अन्य मध्यम से हमारे समाने एक ज्योतिष का बहुचर्चित योग के रूप में एक दोष का नाम सामने आता हैं जिसे हम काल सर्प दोष योग के नाम से जानते है। जब सूर्यादि सातों ग्रहों की स्थिती राहु (सर्प मुख) एवं केतु (सर्प पूंछ) नाम के दो ग्रहों के मध्य में स्थिंत हो तब ये योग निर्मित होता है। परन्तु वास्तव में हमें इस योग से बहुत अधिक भयभीत होने कि आवश्यकता नहीं है। बल्कि इसे समझने ओर इसके प्रभाव को जानने आवश्यकता है।
जब सूर्य चन्द्र मंगल बुध गुरु शुक्र एवं शनि सातों ग्रह, भाव, राशि एवं अंश सभी स्थिति में राहु और केतु के मध्य स्थित हो तो कालसर्प योग निर्मित होता है। साधारण तरिके के लिए आप लग्न कुण्डली के उपर राहु और केतु को एक लाईन में मिलाते हुए एक स्कैल या पैन रखें अगर स्कैल या पैन के एक ओर सूर्य चन्द्र मंगल बुध गुरु शुक्र एवं शनि सातों ग्रह हो ओर दूसरी ओर एक भी ग्रह ना हो तो कालसर्प योग निर्मित होता है। अपनी कुण्डली में सटिक काल सर्प दोष की जानकारी हेतु आप हम से सम्पर्क कर सकते है। काल सर्प योग के कुछ साम्भावित दुष्प्रभाव
कालसर्प दोष कुण्डली में है तो वो हमेंशा प्रभावित रहेगा ऐसा बिल्कुल नहीं है कालसर्प दोष का विशेष समय होता है जब वो विशेष रूप से प्रभावित हो कर समस्यों को उत्पन्न करता हैं। वो समय निम्नलिखित है
किसी जातक की जन्म कुण्डाली में कालसर्प योग कि स्थिति सुनिश्चित करने से पहले जन्म कुंडली में स्थित सभी ग्रहों के अषं, ग्रहों से निर्मित योगो पंचमहा योग एवं अन्य तथ्यों पर सावधानी पूर्वक विचार करना अति आवश्यक है राहु केतु से 10 अषं तक कोई भी अन्य सातो ग्रहो में से अगर आगे है तो कालसर्प योग खण्डित होगा। रुचक योग, भद्र योग, हंस योग, मालव्य योग, शष योग में से कोई भी एक योग निर्मित है तो कालसर्प योग खण्डित होगा।
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