भारतीय वैदिक ज्योतिष शास्त्र में कई दोषों व योगों का वर्णन किया गया है इन्ही दोषों के अन्तर्गत एक दोष है जिसे पितृ दोष के नाम से ज्योतिष शास्त्र में जगह प्राप्त है। अधिकतर ज्योतिषियों और विद्वानों का यह विचार एवं मत है कि पितृ दोष पितरों या कुल के मृत्यु प्राप्त पूर्वजों के रुष्ट होने से उत्पन्न होता है अर्थात पूर्वजों एवं पितरों के असन्तुष्ट होने या श्राद्ध पिण्डदान आदि पूजन उचित वैदिक विधि के अनुसार न हो से पितृ दोष उत्तपन होता है या पितृ दोष लगता है। वास्तव में जब मैनें ज्योतिष का अध्ययन किया तो पितृ दोष के प्रति इस प्रकार कि धारण व मान्यता को गलत पाया, अगर इस धारणा के अनुसार देखे तो जिन के मात-पिता जीवित है उन्हें इस दोष के प्रभाव से मुक्त होना चाहिए क्योकि पितरों की तृप्ति व शान्ति पुजन की जिम्मेदारी माता-पिता की है। परन्तु जातक की कुण्डली में अगर पितृ दोष हैं तो माता-पिता के होते हुए भी पितृ दोष जातक को समस्याओं और परेशानियों ग्रसित करता है। अर्थात पितृ दोष पितरों के असन्तुष्ट होने से नहीं अपितु कुण्डली में सूर्य के पीडित होने से निर्मित होता है। हॉं सूर्य पिता व पितरों का कारक ग्रह अवश्य है। इसलिए यदि पितृ दोष किसी जातक की जन्म कुण्डली में उपस्थित है तो उसका पितरों से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि वह पितृ दोष तो उस व्यक्ति को इस जन्म में अच्छे-बुरे कर्मों करने की स्वतंत्रता मिलने से पहले ही निर्धारित हो गया था। आइये अब हम देखते है कि पितृ दोष ज्योतिष शास्त्र के किन सिद्धान्तों से उत्पन्न होता है। जब किसी जातक कि जन्म कुण्डली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम तथा दशम भावों में से किसी भी एक भाव में सूर्य-राहु वा सूर्य-शनि की युक्ती हो तो जातक को पितृ दोष से पिडित माना जाता है। पितृ दोष कुण्डली के जिस भाव में निर्मित होता है उसी भाव से सम्बंधित शुभाशुभ फल प्रदान करता हैं। उदाहरणार्थ-प्रथम भाव में सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि आदि अशुभ युक्ति हो तो वह व्यक्ति शारीरिक कष्ट, रोग, स्वास्थ्य पिडा, सम्मान नहीं मिलना, सुख में कमी, आर्थिक संकट, धनोपर्जन में बाधा, विवाह में विलम्ब या वैवाहिक जीवन कलह युक्त, तनाव युक्त जीवन में इत्यादि अशुभ फल प्रकट होते हैं। इसके अलावा ज्योतिष शास्त्र में कुण्डली के नवम भाव को पितरों का भाव माना जाता है अगर नवम भाव या नवम भाव के स्वामी पर किसी भी प्रकार से राहु का संबध हो तो भी पितृ दोष मना जाएगा।
जातक कि कुण्डली में जिस भाव में पितृ दोष निर्मित है एवं सूर्य जिस भाव का स्वामी है विशेषतः उस भाव से सम्बन्धित फल की प्राप्ति में विशेष कष्ट की प्राप्ति होती है। पितृ दोष होने पर सामान्यतः निम्न प्रभाव कुण्डली के जातक पर दिखता है। पितरों का स्वपन में दिखना, शारीरिक कष्ट बने रहना, मानसिक विकार, स्वभाव में अधिक चिडचिडापन, वस्तुओं का अभाव, जीवन में सफलता का आभाव, भुतबाधा से भयभीत रहना, संतान उत्पति में बाधा, विकलांग संतान कि प्राप्ति, विवाह विलम्ब, वैवाहिक जीवन कष्टमय होना, भाग्यवृद्धि में बाधा आना, पैतृक सम्पति कि प्राप्ती में बाधा, आय की प्राप्ति में बाधा, पद-सम्मान प्राप्ति में बाधा, धन होतें हुए भी घर का निर्माण न हो पाना, तनाव युक्त जीवन, शत्रु बाधा, उन्नति में बाधाएं इत्यादि अशुभ फल प्रकट होते हैं।
इसी प्रकार से सूर्य शनि वा राहु के साथ मिलकर अनेक प्रकार के कष्टकारी एवं अनिष्टकारी योग बनते हैं, जो पितृ दोष के अनुसार ही अशुभ फल प्रदान करने वाले होते हैं। ज्योतिष के अन्य योगों की चर्चा हम आगें करेगें। यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली स्पष्ट रुप से पितृ दोष की जनकारी हो जाये तब उस जातक को निम्न उपाय के द्वारा दोषों का निवारण करना चाहिए ।
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