पहचान -जब जातक कि कुण्डली में लग्नेश या चंद्र से युक्त राहु लग्न में हो, तो प्रेत दोष निर्मित होता है। दूसरी स्थिति में यदि जातक कि कुण्डली में दशम भाव का स्वामी आठवें या एकादश भाव में हो और संबंधित भाव के स्वामी से दृष्ट हो, तो उस स्थिति में भी प्रेत दोष निर्मित होता है।
प्रभाव-प्रेत दोष के कारण जातक को वहम होना अधिक हो सकता है। इस दोष के कारण जातक के स्वभाव में भय होना अधिक हो सकता है एवं डारवने स्वप्न भी अधिक हो सकता है।
उपाय - प्रतिदिन स्नान करें। तीर्थ यात्रा करें। प्रतिदिन षिव जी का पूजन करें। “ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट” का जाप करना चाहिए।अपनी कुण्डली के अनुसार उपाय जानने हेतु भाविष्य दृष्टि ज्योतिष संस्थान से सम्पर्क करें।
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