हिन्दु धर्म में शास्त्रों के अनुसार मानव जीवन का सोलह संस्कारों से परिणीत किया गया है। इन सस्कारों में विशेष संस्कार है विवाह संस्कार जिस सस्कार पर मानव जीवन कि आधारशीला ठिकी हुई है। हिन्दु वैदिक परम्परा के अनुसार विवाह के पूर्व वर एवं कन्या की कुण्डली का मिलान किया जाता है इस मिलन में वर-कन्या के सुखमय वैवाहिक जीवन के बारे में वैदिक ज्योतिष के अनुसार विचार किया जाता है। इस कुण्डली मिलान में सबसे प्रचलित दोष मंगल दोष पर कुण्डली मिलानकर्ता अवश्य विचार करता है क्योकि कुण्डली मिलान के समय ये दोष कुण्डली जातक कि या कुण्डली मिलान करवाने वाले कि ओर से प्रश्नय रूप में आता है कि कुण्डली में मंगली दोष तो नहीं है। आईये सबसे पहले इस भयदायक विचार कि वास्तविकता से आपको अवगत करते है भ्रान्तियों व कुछ अल्प ज्ञान रखने वाले ज्योतिषियों के अनुसार यदि किसी मनुष्य की कुण्डली में मंगली दोष निर्मित हो तो ऐसे मनुष्य को केवल उसी मनुष्य के साथ विवाह करना उचित होता है जिसकी अपनी कुण्डली में भी मंगली दोष निर्मित हो वरना कुण्डली के जातक मनुष्य का वैवाहिक (दाम्पत्य) जीवन संघर्षमय एवं कष्टमय हो जाता है। तथा कुण्डली के जातक मनुष्य के पति अथवा पत्नि की मृत्यु भी संभावित हो सकती है। मेरे विचार के अनुसार यह धारणा एक अंधविश्वास मात्र है इस तथ्य में पूर्णतः सत्यता नहीं है। क्योकि भारतीय ज्योतिष शास्त्र में ऐसा वर्णन नहीं है कि मंगली दोष युक्त जातक का विवाह मंगली दोष युक्त जातक से ही अनिर्वार्य है। मेरे जीवन का अध्ययन व अनुभव के अनुसार एक मंगलीदोष जातक का विवाह मंगली दोष विमुक्त मनुष्य के साथ भी सफल हो सकता है कहने का अर्थ है कि मंगली दोष का परिहर होना कुण्डली में आवश्यक है न दोनों कुण्डली में मंगली दोष होना। मंगली दोष के अलावा कुण्डली में सप्तम भाव, सप्तमेष एवं दाम्पत्य कारक ग्रहों के साथ-साथ विवाह विघटन योग, वैधुर योग, निसंतान योग, वैधव योग, नपुंषक योग, दो-विवाह योग इत्यादि का विचार विशेष रूप से किया जाना चाहिएं। किसी कि कुण्डली में मंगली दोष कैसे निर्मित होता है। इस पर विचार करते है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब किसी भी कुण्डली में मंगल ग्रह अगर प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, एवं द्वादष भाव में स्थित होत चाहे वो इन राषियों में किसी भी भाव में हों तो ऐसी कुण्डली में मंगली दोष निर्मित माना जाता है।
इस मंगली दोष का विषलेषण करते समय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूदर्षन चक्र ( चन्द्र कुण्डली एवं शुक्र कुण्डली) का भी विचार अवष्य करना चाहिऐं। चन्द्र कुण्डली और शुक्र कुण्डली से भी प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, एवं द्वादष भाव में स्थित मंगल हों तो दाम्पत्य जीवन में कष्टप्राप्ति का योग बनाता हैं।
नोट- कुण्डली मिलान के समय मंगली दोष के शुभ अशुभ प्रभाव का निर्णय के साथ मिलान संबंधी अन्य महत्वपूर्ण तत्वों को भी ध्यान में रखना चाहिए। मंगली दोष का शास्त्रोक्त विधि से परिहार, गुण मिलान की अल्पता, या बहुलता शुभ अशुभ ग्रहों की स्तिथि और दृष्टि विचार, सप्तम, द्वितिय एवं अष्टम भावों में मंगल के अतिरिक्ति इन्ही भावों के भावेष तथा विवाह सुखकारक चन्द्र शुक्र एवं गुरु आदि ग्रहों की स्तिथि, नवांष और चलित कुण्डली तथा अष्टक वर्ग में मंगल की शुभ अशुभ स्तिथि एवं दषांतर्दषा का आकलन करने के बाद ही मंगल, या मंगलीक दोष सम्बंधी अंतिम निर्णय करना चाहिए।
मंगली दोष को भौम दोष के नाम से भी जाना जाता है। ज्योतिषी जन के मतनुसार किसी मनुष्य की जन्म कुण्डली में मंगली दोष होने की स्थिति में ऐसे कुण्डली धारक मनुष्य का विवाह अत्याधिक विलम्ब से हो सकता है अथवा कुण्डली धारक के वैवाहिक जीवन कष्टमय हो सकता हैं जिनमें कुण्डली धारक मनुष्य को अपने दाम्पत्य जीवन के कष्ट (गृह कलह), पति या पत्नि से तलाक अथवा वैधव्य जैसी समास्यों का भी सामना करना पड सकता है।
भारतीय वैदिक ज्योजिष शास्त्र के अनुसार अगर कुण्डली में निम्न योग या स्थिति हो तो मंगली दोष का प्रभाव नहीं होता है।
मेषस्थ मंगल लग्न में, वृष्चिकस्थ चतुर्थ, मकर का सातवें, कर्क राषि का आठवें एवं धनु का बाहरवें भाव में हो तो मंगली दोष नहीं होता।
द्वादष भाव में यदि मंगल बुध तथा शुक्र की राषि अर्थात द्वादष भाव में यदि मंगल मिथुन कन्या तुला या वृष राषि में स्थित हो तो मंगली दोष समाप्त हो जाता है।
केन्द्र और त्रिकोण में शुभग्रह तथा तीसरे, छठे या 11वें भाव में पाप ग्रह हों तथा सप्तमेष सप्तम में हो तो मंगल दोष समाप्त हो जाता है।
जब द्वितीय भाव में चन्द्र-षु क्र का योग हो, या मंगल गुरु द्वारा दृष्ट हो, केन्द्र भावस्थ राहु हो अथवा केन्द्र में राहु-मंगल का योग हो तो मंगल दोष
यदि किसी कुण्डली में मंगल की स्थिति मंगली योग बना रही हो और दूसरे की कुण्डली में उन्हीं स्थानों पर प्रबल पाप ग्रह (राहु या शनि) स्थित हो, तो मंगल योग समाप्त हो जाता है।
कन्या वा वर की जन्म कुण्डली में से एक मंगली हो और दूसरे की जन्म कुण्डली तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में राहु, मंगल या शनि हो तो मंगल दोष समाप्त हो जाता है।
मंगल के उपर व सप्तम भाव में शुभकारक ग्रह पर गुरु कि शुभ दृष्टि हो तो मंगली दोष नहीं होता।
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